समरी ट्रायल समझने से पहले हमें यह पता होना चाहिए कि ट्रायल क्या होता है। ट्रायल से हमारा मतलब है, कि किसी भी केस का कोर्ट में चलना जिसे हम अपनी आम भाषा में कहते हैं मुकदमा कोर्ट में चलना।
इसी तरीके से समरी ट्रायल का मतलब है मुकदमा कोर्ट में चलना। लेकिन उस मुकदमे यानी केस का स्पीडी ट्रायल होना यानी केस को जल्दी से निपटाना दो या तीन हेअरिंग यानी सुनवाई में खत्म कर देना। समरी ट्रायल में ज़यादा से ज़यादा 3 महीने की सज़ा दी जा सकती है। विटनेस यानी गवाहों के बयान रिकॉर्ड करने की जरूरत नहीं होती। अगर मामला ₹200 से ज़यादा का नहीं है तो आगे अपील भी नहीं हो सकती।
अब हम समझते हैं सैक्शन 260 सीआरपीसी के बारे में यह सैक्शन 260 हमें बताती है कि कौन-कौन से मैजिस्ट्रेट यानी जज इस समरी ट्रायल को सुन सकते हैं। यानी कौन से जजेस को यह पावर होगा कि वह समरी ट्रायल वाले cases चलाएं और इस सेक्शन में यह भी दिया गया है कि इन समरी ट्रायल वाले केस में कितनी पनिशमेंट यानी सज़ा होती है। इसमें यह बताया गया है कि चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट के पास यह पावर है। पावर का ज़ीक्र हम यहां इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अगर किसी जज के पास समरी ट्रायल करवाने का पावर नहीं है तो उसके द्वारा चलाई गई प्रोसीडिंग्स यानी समरी ट्रायल का मुकदमा वाइड यानी गलत माना जाएगा। वह कानूनी गलत होगा।
चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट के इलावा इसे मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट और कोई भी मैजिस्ट्रेट जो फर्स्ट क्लास का हो और उसे हाईकोर्ट यह पावर दे कि वह समरी ट्रायल चला सकता है। इसमें फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट तभी चला सकता है समरी ट्रायल जब वह एंपावर्ड हो हाई कोर्ट द्वारा।
अब इस सेक्शन में एक बात यह भी समझने वाली है कि यह कोई मजबूरी या बहुत ज़रूरी नहीं है कि समरी ट्रायल चलाया जाए। अगर मैजिस्ट्रेट को लगता है कि इस केस को समरी ट्रायल में जाना चाहिए तो वह इस या किसी केस को समरी ट्रायल में डालेगा और अगर मामला जो है वह पेचीदा है और इसमें केस के लंबे खींचने की संभावना है, तो वह केस को समरी ट्रायल में नहीं डालेगा। बाकी यह समरी ट्रायल में भी तरीका वैसा ही रहेगा जैसे आम cases में होता है। जैसे कि वारंट का इशू होना या किसी के खिलाफ summon इश्यू होना।
इसमें जुर्म और सजाएं यानी क्राइम और पनिशमेंट के बारे में भी दिया गया है।
पहला है ऐसा जुर्म जिसमें मौत की सजा नहीं दी जा सकती यानी डेथ सेंटेंस नहीं दी जा सकती।
दूसरा है ऐसा जुर्म जिसमें उम्र कैद की सजा नहीं दी जा सकती या जिसमें 2 साल से ज़यादा सज़ा हो ऐसे कैसे समरी ट्रायल में नहीं आ सकते।
तीसरी बात जो सेक्शन 260 में दी गई है वह यह है कि सेक्शन 379 यानी थेफ्ट (चोरी), सेक्शन 381 यानी अगर कोई नौकर घर या दुकान में चोरी करता है और चोरी की प्रॉपर्टी यानी चुराई हुई चीज़ दो हज़ार से कम है तो यह केस समरी ट्रायल में जा सकता है।
चौथी बात यह है कि सेक्शन 411 आईपीसी की, अगर कोई चोरी की चीज़ रखता है या किसी से खरीदता है, और उस चीज की कीमत 2000 से कम है, तो यह कैसे समरी ट्रायल में जा सकता है। अगर कोई चोरी की चीज़ को छुपाता है तब भी, लेकिन चीज़ की कीमत 2000 से कम होनी चाहिए तो ऐसा केस समरी ट्रायल में जा सकता है।
सेक्शन 504 आईपीसी insult with intention to provoke a breach of the peace मतलब अगर कोई जानबूझकर किसी की इंसल्ट यानी बेज़ती करता है यह जानते हुए कि वह व्यक्ति अब शांति को भंग कर देगा तो यह ऑफेंस है यानी जुर्म है।
अगर कोई केस समरी ट्रायल में चल रहा है, और अब मैजिस्ट्रेट को यह लगता है कि यह केस समरी ट्रायल में नहीं चल सकता, तो वह दोबारा विटनेसेस को बुलाएगा और केस रेगुलर बेसिस पर चलाएगा, यानी समरी ट्रायल से पहले जैसे वह केस चल रहा था उसी तरीके से।
सेक्शन 261 में दिया गया है कि हाई कोर्ट सेकंड क्लास के मैजिस्ट्रेट को पावर देता है, कि वह भी समरी ट्रायल चला सकता है, लेकिन सेकंड क्लास मैजिस्ट्रेट सिर्फ उसी केस में समरी ट्रायल चलाता है जिसमें सजा 6 महीने से ज़यादा ना हो या बस फाइन हो।
सेक्शन 262 बताती है कि इन समरी ट्रायल को चलाने का प्रोसीजर क्या होगा। यानी तरीका क्या होगा। तो इसमें ज़यादा ना जाते हुए हम यह बात देखते हैं कि इसमें प्रोसीजर वही सेम होगा जो रेगुलर ट्रायल में होता है, यानी summon और वारंट्स का इशू होना, और 3 महीने से ज़यादा सजा नहीं होगी, यदि जिस व्यक्ति को 3 महीने की सज़ा मिली है और फाइन भी हुआ है, लेकिन वह इंसान फाइन नहीं देता, तो उसे 3 महीने से ज़यादा भी जेल में रहना पड़ सकता है।
सेक्शन 263 बताती है कि समरी ट्रायल में रिकॉर्ड भी बनाया जाएगा जैसे सीरियल नंबर केस का, डेट जब क्राइम यानी जुर्म हुआ था, डेट जब कंप्लेंट लिखाई गई थी।
सेक्शन 264 में जज को जजमेंट लिखनी होगी लेकिन साथ में रीज़न भी देना होगा कि सजा क्यों दी गई है, या क्यों मुजरिम को बरी कर दिया गया है।
सेक्शन 265 में जो जजमेंट लिखी जाएगी वह कोर्ट लैंग्वेज यानी लीगल लैंग्वेज होगी और आखिर में जज यानी मैजिस्ट्रेट उस पर अपना पूरा नाम लिखेगा और जजमेंट पास कर देगा।